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25-Aug-2025 03:16 PM
By First Bihar
Life Style: बच्चों की नींद सिर्फ आराम के लिए नहीं, बल्कि उनके मानसिक विकास और हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए बेहद जरूरी है। पेरेंटिंग एक्सपर्ट श्वेता बताती हैं कि नींद बच्चों के ब्रेन की ग्रोथ, याददाश्त, सीखने की क्षमता और मूड को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। उनका कहना है कि बच्चों के लिए सबसे हेल्दी स्लीप रूटीन रात 9 बजे से सुबह 7 बजे तक का होता है। यही वह समय है जब बच्चे का दिमाग और शरीर दोनों पूरी तरह से रिकवर होते हैं और नए दिन के लिए तैयार होते हैं।
श्वेता के मुताबिक, जब बच्चा समय पर यानी रात 9 बजे सो जाता है, तो उसके शरीर में नेचुरल स्लीप हार्मोन्स का उत्पादन होता है, जो नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं। इससे दिमाग दिनभर सीखी हुई जानकारी को सही तरीके से स्टोर करता है। पढ़ाई हो, खेल हो या कोई अन्य एक्टिविटी, नींद के दौरान दिमाग इन सब जानकारियों को प्रोसेस करता है और उन्हें स्थायी बनाता है। यही कारण है कि समय पर सोने वाले बच्चे अक्सर ज्यादा तेज, शांत और एकाग्र होते हैं।
लेकिन अगर बच्चा 9 बजे की बजाय 10 बजे या उससे भी देर से सोता है, तो इसका सीधा असर उसकी मेमोरी प्रोसेसिंग और ब्रेन डेवलपमेंट पर पड़ता है। श्वेता बताती हैं कि नींद के दौरान सक्रिय होने वाला ग्रोथ हार्मोन, जो बच्चों के दिमाग और शरीर के विकास में अहम भूमिका निभाता है, देर से सोने पर ठीक से सक्रिय नहीं हो पाता। नतीजा यह होता है कि बच्चा मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है, उसकी सीखने की क्षमता घट सकती है और वह छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ा भी हो सकता है।
रात 11 बजे के बाद सोने पर स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। श्वेता बताती हैं कि इस समय तक बच्चे का दिमाग थक कर अव्यवस्थित हो जाता है। नींद के दौरान दिमाग खुद को साफ करता है, यानी जो जानकारियां जरूरी नहीं होतीं उन्हें हटाकर जरूरी बातों को स्टोर करता है। लेकिन अगर नींद पूरी नहीं हो पाती या बच्चा बहुत देर से सोता है, तो दिमाग यह प्रोसेस ठीक से नहीं कर पाता। इससे बच्चे की कंसंट्रेशन, लर्निंग एबिलिटी और इमोशनल बैलेंस पर बुरा असर पड़ता है।
अगर बच्चा आधी रात यानी 12 बजे के बाद सोता है, तो यह उसके दिमाग और शरीर दोनों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। एक्सपर्ट के अनुसार, इतनी देर से सोने वाले बच्चों की नींद कभी पूरी नहीं हो पाती, जिससे वे दिनभर सुस्त रहते हैं, पढ़ाई में मन नहीं लगता और वे मूड स्विंग्स का शिकार हो सकते हैं। इतना ही नहीं, देर से सोने की आदत बच्चों में कम उम्र में प्यूबर्टी (early puberty) आने का खतरा भी बढ़ा देती है, जो उनके समग्र विकास को प्रभावित कर सकता है।
एक्सपर्ट श्वेता का मानना है कि अच्छी स्लीप हैबिट्स केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पेरेंट्स के लिए भी जरूरी हैं। अगर माता-पिता खुद समय पर सोने और जागने की आदत अपनाएंगे, तो बच्चे भी उन्हें देखकर वैसा ही व्यवहार अपनाएंगे। 9 से 7 का स्लीप शेड्यूल न केवल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को सपोर्ट करता है, बल्कि उनके मूड, पढ़ाई और हेल्थ को भी बैलेंस करता है। इसलिए समय पर सोने की आदत को केवल नियम नहीं, बल्कि हेल्दी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाना बेहद जरूरी है।