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03-Sep-2025 11:53 AM
By First Bihar
Success Story: जब हौसला ऊंची उड़ान भरने का हो, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। परेशानियाँ आती हैं, लेकिन वही आगे बढ़ने का हौसला भी देती हैं। ऐसी ही कहानी है IAS सुरभि गौतम की, जो आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। अंग्रेज़ी बोलने में कठिनाई और तमाम संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और सिविल सेवा परीक्षा (UPSC CSE) में ऑल इंडिया रैंक 50 हासिल कर IAS अफसर बनीं।
दरअसल, सुरभि मध्यप्रदेश के सतना ज़िले के एक छोटे से गाँव से आती हैं। उनके पिता जिला न्यायालय में वकील हैं और माँ एक स्कूल टीचर हैं। बेहद साधारण परिवार से आने वाली सुरभि के पास सीमित संसाधन थे, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई के प्रति कभी समझौता नहीं किया। 10वीं और 12वीं दोनों में उन्होंने 90% से अधिक अंक हासिल किए, जिससे उनकी प्रतिभा शुरू से ही दिखने लगी थी।
सुरभि ने भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की डिग्री ली, और यूनिवर्सिटी टॉपर बनकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। लेकिन उनका सपना केवल इंजीनियर बनना नहीं था। वे कुछ ऐसा करना चाहती थीं जिससे समाज में बदलाव लाया जा सके और इसके लिए उन्होंने सिविल सेवा को चुना।
हालाँकि सुरभि पढ़ाई में तेज थीं, लेकिन अंग्रेज़ी बोलने में झिझक होती थी। कॉलेज में उन्हें अक्सर अंग्रेजी उच्चारण या बोलचाल को लेकर ताने सुनने पड़ते थे। लेकिन उन्होंने इस कमजोरी को कभी हार नहीं बनने दिया। उन्होंने हर दिन 10 नए अंग्रेज़ी शब्द याद करने और उन्हें प्रयोग में लाने का प्रण लिया। धीरे-धीरे, उनकी भाषा पर पकड़ मजबूत होती गई।
IAS बनने से पहले सुरभि ने कई कठिन प्रतियोगी परीक्षाएं पास कीं। उन्होंने GATE, ISRO, IES, MPPSC, SSC CGL, FCI, दिल्ली पुलिस जैसी कई प्रतिष्ठित परीक्षाएं पास कीं। यही नहीं, उन्होंने BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) में एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट के रूप में काम भी किया।
2016 में, सुरभि ने अपने पहले ही प्रयास में UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास की और AIR 50 हासिल कर ली। यह उपलब्धि उनके अथक परिश्रम, आत्म-विश्वास और समर्पण का परिणाम थी। आज वे एक IAS अधिकारी के रूप में देश की सेवा कर रही हैं और युवाओं को यह संदेश देती हैं कि "अगर संकल्प मजबूत हो तो कोई भी कमी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती।"
सुरभि की कहानी उन छात्रों के लिए एक मिसाल है जो सोचते हैं कि इंग्लिश में कमजोर होना सफलता में बाधा है। उन्होंने दिखा दिया कि दृढ़ निश्चय, आत्ममंथन और नियमित अभ्यास से कोई भी कमी को ताकत में बदला जा सकता है।