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12-Apr-2025 04:50 PM
By First Bihar
Rooh Afza : गर्मियों की तपिश में जब शरीर थक जाता है और गला सूखने लगता है, तब राहत देने वाले पेयों में सबसे पहले जिस नाम का ज़िक्र होता है, वो है "रूह अफजा"। यह गुलाबी रंग का मीठा शरबत न केवल स्वाद में खास है, बल्कि इसके पीछे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी छुपी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस शरबत का नाम किसने रखा और इसका मतलब क्या है? चलिए, इसकी अनसुनी कहानी पर एक नज़र डालते हैं।
नामकरण की रोचक दास्तान
दिल्ली के लाल कुआं इलाके में 1906 में एक यूनानी चिकित्सा केंद्र हमदर्द दवाखाना की नींव हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने रखी थी। उन्होंने गर्मी से राहत देने वाले एक खास शरबत को तैयार किया, जो प्राकृतिक जड़ी-बूटियों पर आधारित था। इस पेय को एक उपयुक्त नाम देने की जरूरत थी, और यह नाम सुझाया उनके करीबी और प्रसिद्ध फारसी-उर्दू कवि नज़ीर अहमद ने – “रूह अफजा”। फारसी में इसका मतलब होता है "आत्मा को ताजगी देने वाला"। यह न केवल पेय के प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि इसमें एक शायराना गहराई भी है।
रूह अफजा का अनोखा मिश्रण
रूह अफजा केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि इसमें मौजूद तत्व भी इसे खास बनाते हैं। इसमें चंदन, गुलाब जल, केवड़ा, पुदीना, नींबू, खरबूजे के बीज जैसे प्राकृतिक घटक होते हैं, जो शरीर को ठंडक पहुंचाते हैं। इसे पानी, दूध या आइसक्रीम के साथ मिलाकर पिया जा सकता है और यह गर्मी के मौसम में लू और डिहाइड्रेशन से राहत दिलाता है।
विरासत और विस्तार की कहानी
हकीम अब्दुल मजीद के निधन के बाद उनके बेटों ने हमदर्द की विरासत को आगे बढ़ाया। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय हमदर्द दो हिस्सों में बंट गया – भारत में इसे हकीम अब्दुल हमीद ने ट्रस्ट बना दिया जबकि पाकिस्तान में हकीम मोहम्मद सईद ने इसका नेतृत्व संभाला। दोनों देशों में रूह अफजा का उत्पादन हुआ और यह पूरे दक्षिण एशिया में लोकप्रियता हासिल करता गया।
वर्तमान में रूह अफजा का निर्माण कौन करता है?
भारत में रूह अफजा का निर्माण हमदर्द लैबोरेट्रीज़ इंडिया करती है, जो FMCG और हेल्थकेयर सेगमेंट में अग्रणी भूमिका निभाती है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में कंपनी ने ₹1,843 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.9% अधिक है। कंपनी अब वेलनेस और कॉस्मेटिक्स सेगमेंट में भी अपना दायरा बढ़ाने की रणनीति तैयार कर रही है।
विवादों में क्यों आया रूह अफजा?
हाल ही में बाबा रामदेव के एक वीडियो वायरल होने के बाद रूह अफजा चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने रूह अफजा को ‘शरबत जिहाद’ से जोड़ा और कंपनी पर धार्मिक फंडिंग के आरोप लगाए। उनका कहना था कि इससे मिलने वाले लाभ का प्रयोग धार्मिक संस्थानों के निर्माण में होता है। इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर रूह अफजा को लेकर बहस शुरू हो गई। हालाँकि रूह अफजा सिर्फ एक शरबत नहीं, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की भावनात्मक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। हर गर्मी, हर रमजान, और हर पारिवारिक समारोह में इसकी मिठास लोगों के दिलों तक पहुंचती है। चाहे विवाद हों या तारीफें, एक बात तो तय है , रूह अफजा ने बीते एक सदी से लाखों लोगों की आत्मा को ताजगी जरूर दी है।
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