Road Accident: NH किनारे गड्ढे में पलटी सवारी बस, कई यात्री घायल Bihar Politics: सीएम नीतीश के ऐतिहासिक फैसले का दोनों डिप्टी सीएम ने किया स्वागत, क्या बोले सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा? Bihar Politics: सीएम नीतीश के ऐतिहासिक फैसले का दोनों डिप्टी सीएम ने किया स्वागत, क्या बोले सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा? Bihar Crime News: सो रही महिला पर अपराधियों ने बरसाई गोलियां, जांच में जुटी पुलिस Vande Bharat Express: पटना से दिल्ली के बीच जल्द शुरू होगी स्लीपर वंदे भारत एक्सप्रेस, ट्रेन को लेकर आया बड़ा अपडेट Vande Bharat Express: पटना से दिल्ली के बीच जल्द शुरू होगी स्लीपर वंदे भारत एक्सप्रेस, ट्रेन को लेकर आया बड़ा अपडेट Bihar News: प्रदेश के सभी पंचायतों में होगी सोलर लाइट की जांच, जानें किस वजह से लिया गया यह फैसला Online Fraud: पिछले 37 दिनों में साइबर ठगी से बचे 61 लाख लोग, तरीका जान आप भी कहोगे "ये हुई न बात" Bihar News: राज्य के कॉलेजों में 115 प्रधानाचार्यों की होगी नियुक्ति, कुलपतियों को दिए गए आदेश INDvsENG: पहले ही दिन भारत ने इंग्लैंड में रचा इतिहास, अब तक नहीं हुआ था यह कारनामा
08-Dec-2023 09:38 AM
By First Bihar
PATNA : लोकसभा चुनाव से 4 महीना पहले विधानसभा चुनाव को बीजेपी एक सेमीफाइनल के तौर पर देखा रही थी। यही वजह रही की पांच राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा ने तीन राज्यों में अधिक मेहनत किया और जिसका उसे रिजल्ट भी मिला। लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो बना हुआ है वह यह है कि विधानसभा के चुनाव में आखिर भाजपा ने क्यों केंद्रीय मंत्री और 17 सांसद को मैदान में उतारा ?
दरअसल, किसी भी सांसद के अंतर्गत कम से कम 6 विधानसभा क्षेत्र रहता है। ऐसे में भाजपा ने 17 सांसदों को यह टास्क दिया कि आप अपने इस 6 विधानसभा क्षेत्र में से किसी एक विधानसभा क्षेत्र में जाकर चुनाव लड़िए और जीत हासिल कीजिए। इसके पीछे की वजह यह थी कि भाजपा फाइनल से पहले इस सेमीफाइनल में विपक्षी दलों को अपनी ताकत दिखानी चाहती थी। यही वजह रही की भाजपा ने अपने सांसद को मैदान में उतारा और इसका फायदा भी उसे मिला।
वहीं, भाजपा के इस चाल में इंडिया गठबंधन के नेता फंस गए और उनके नेता के बीच फूट के सुर उठने लगे। इतना ही नहीं भाजपा के इस चाल से विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस का कद छोटा हो गया और अब क्षेत्रीय पार्टी का दबाव कांग्रेस पर बढ़ गया। ऐसे में जब इनके बीच सीट का बंटवारा होगा तो कांग्रेस को जाहिर है कि अधिक सीट मिलेगी नहीं तो फिर भाजपा के लिए भी लोकसभा की लड़ाई थोड़ी आसानी होगी। क्योंकि भाजपा के कोर वोटरों पर अगर उनके बाद किसी की सबसे अधिक पकड़ है तो वह कांग्रेस ही है। क्योंकि , इस वोट बैंक पर क्षेत्रीय दलों की उतनी अच्छी पकड़ नहीं बताई जाती है।
यदि हम इससे पहले के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा यह चुनाव तो मोदी के नाम पर जीत गया था और यहां जब तीन राज्यों में चुनाव हो रहे थे तो यहां भी मुख्य मुद्दा मोदी ही रहे। पार्टी ने इन तीन राज्यों में बिना सीएम फेस के ऐलान किए चुनाव लड़ी और जीत भी हासिल हुआ। इतना ही नहीं इसके पीछे यह भी रणनीति थी कि भाजपा यहां के सांसद और इन इलाकों से आने वाले केंद्रीय मंत्री को चुनाव मैदान में उतारेगी ताकि जनता को यह लगे की उन्हें सीएम बनाया जाएगा और आसानी से पार्टी को जीत हासिल हो सके। यही वजह है कि चुनाव जीतने के बावजूद अभी तक सीएम चेहरे को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जबकि आम तौर पर भाजपा में ऐसा देखने को नहीं मिलता है।
वहीं, इसके बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि जिन 12 सांसदों ने विधायक का चुनाव जीता है और अपना इस्तीफा भी दे दिया है। वैसे में उनको भाजपा कहां सेट करने वाली है। जब इन सवालों को लेकर पार्टी के कुछ नेता से बात की जाती है तो नाम नहीं छापने के शर्त यह बतलाते हैं कि उनमें से कुछ लोगों को भाजपा राज्यों में मंत्री बनने जा रही है। क्योंकि, भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कैबिनेट में नए और युवा चेहरा को मौका देने की योजना बना रही है। लिहाजा जिन सांसदों को या फिर केंद्रीय मंत्री को विधानसभा का चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने इस्तीफा दिया उन्हें राज्यों में मंत्री बनाया जाएगा ताकि उनका कद अधिक न घट सके। इसके आलावा जिन सांसदों ने इस्तीफा दिया है उन्हें पार्टी संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने की योजना बना रही है।
इसके आलावा जो सबसे महत्वपूर्ण और अहम सवाल है वो ये है कि- क्या भाजपा जो दांव विधानसभा के चुनाव में खेला है उसका लोकसभा पर बेहतर असर दिखेगा। तो इसको लेकर जब कुछ पुराने रिपोर्ट्स पर नजर डाली जाति है तो चीजें निकलकर सामने आती है। उसके अनुसार यह मालूम चलता है कि अबतक पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मोदी के नाम पर बहुमत तो हासिल कर लिया है, लेकिन इससे पार्टी के अंदर थोड़ा लचीलापन भी आया है। ऐसे में भाजपा उन सांसद पर अधिक नजर बनाई हुई है जिन्हें इस बार के लोकसभा चुनाव में थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में इन सांसदों को संगठन में सेट किया जा सकता है या फिर इनके लिए कोई नई योजना बन सकती है।
उधर, बात करें यदि बिहार में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव की तो पार्टी सूत्र यह बतलाते हैं कि जिस तरह से भाजपा ने इन तीन राज्यों में चुनाव के लिए सांसद और मंत्री को मैदान में उतारा था हो सकता है कि ऐसा ही कुछ बिहार में भी देखने को मिले और पार्टी यहां भी सांसद को विधानसभा का चुनाव लड़ने का टास्क दे ताकि वह अकेले दम पर बिहार में अपनी सरकार बना सकें।