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20-Feb-2025 12:53 PM
By First Bihar
निफ्टी FMCG इंडेक्स गुरुवार, 20 फरवरी को लगातार 14वें कारोबारी सत्र में गिरावट के साथ कारोबार करता हुआ दिखा, जो इस इंडेक्स का अब तक का सबसे लंबा गिरावट का दौर साबित हो रहा है। इन 14 कारोबारी सत्रों में इस सेक्टर ने निवेशकों की संपत्ति से करीब ₹2.7 लाख करोड़ रुपये की कमी कर दी है। यह गिरावट केंद्रीय बजट में टैक्स में दी गई राहत के बाद आई उत्साहजनक तेजी के उलट है, जो अब छोटे समय के लिए ही साबित हुई।
बाजार के जानकारों का मानना है कि FMCG इंडेक्स में आई गिरावट का मुख्य कारण कमजोर मांग और कंपनियों पर बढ़ते मार्जिन दबाव हैं। शुरुआती बढ़त के बावजूद, 3 फरवरी से शुरू हुआ यह गिरावट का सिलसिला अब तक 11% तक पहुंच चुका है। इस गिरावट ने उपभोक्ता कंपनियों के शेयरों पर गहरा असर डाला है, जिसके परिणामस्वरूप उनके मार्केट कैप में भारी कमी आई है।
इस गिरावट में सबसे ज्यादा नुकसान ITC को हुआ है, जो सिगरेट बनाने वाली प्रमुख कंपनी है। पिछले 14 सत्रों में ITC का मार्केट कैप ₹77,600 करोड़ घटकर काफी नीचे आ गया है। इसी अवधि में HUL का मार्केट कैप भी ₹64,500 करोड़ घटकर ₹5.2 लाख करोड़ रह गया है। इसके अलावा, Nestle India और Varun Beverages जैसी अन्य FMCG कंपनियों को भी क्रमशः ₹12,400 करोड़ और ₹30,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। यह सभी आंकड़े बाजार में उथल-पुथल का संकेत देते हैं।
हालांकि, इस गिरावट के बीच एक दिलचस्प पक्ष सामने आया है। Nielsen IQ के आंकड़ों के अनुसार, छोटी FMCG कंपनियों ने पिछले 14 दिनों में 8% से 10% तक की वृद्धि दर्ज की है। ये छोटे खिलाड़ी बड़े ब्रांड्स की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि बड़ी कंपनियों को बिक्री मात्रा में महज 0% से 5% तक की बढ़ोतरी देखने को मिली है। विशेष रूप से Radico Khaitan, ITC और Godrej Consumer जैसी कंपनियों के शेयरों में 14% से 15% तक की गिरावट आई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बाजार में छोटे और उभरते ब्रांड्स के लिए ज्यादा अवसर हो सकते हैं।
FMCG कंपनियों की कमाई पर महंगाई का भी असर पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, Britannia Industries ने हाल ही में बताया कि उन्हें अपनी सामग्री खरीदने में 11% तक महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। खासकर पाम ऑयल और कोको की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से यह असर देखा जा रहा है। कंपनी को इस बढ़ोतरी का असर अपने उत्पादों के दाम में 6.5% तक की बढ़ोतरी के रूप में दिखाना पड़ सकता है, जो उपभोक्ताओं पर सीधे असर डालेगा।