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03-Sep-2025 07:39 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों को अब से स्कूल की तरह चलाने का बड़ा फैसला लिया है ताकि बच्चों को शुरुआती शिक्षा और पोषण दोनों एक साथ मिले। अब से ये केंद्र एक प्रकार से मिनी स्कूलों में बदल जाएँगे, जहाँ सुबह घंटी बजेगी, बच्चे प्रार्थना करेंगे, यूनिफॉर्म पहनकर पढ़ाई करेंगे और पोषाहार के साथ बुनियादी शिक्षा लेंगे।
समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी ने बताया कि यह पहल चुनाव के बाद नियमित रूप से शुरू होगी और इससे बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ेगी। जीविका दीदियों के जरिए ड्रेस वितरण कई जिलों में शुरू हो चुका है जबकि स्टडी किट और केंद्रों को रंगीन बनाने का काम भी जोरों पर है। यह योजना 3-6 साल के बच्चों के लिए ICDS का हिस्सा है जो पोषण और प्री-स्कूल एजुकेशन को साथ लाएगी।
योजना के मुख्य फीचर्स
आंगनबाड़ी केंद्रों को स्कूल की तर्ज पर चलाने से बच्चों में पढ़ाई का रुझान बढ़ेगा। मुख्य बदलाव इस तरह हैं:
- रोजाना रूटीन: सुबह घंटी बजने के बाद प्रार्थना, फिर पढ़ाई का समय, उसके बाद पोषाहार वितरण। माता-पिता की मासिक बैठक में बच्चों की स्वास्थ्य रिपोर्ट तैयार होगी ताकि पोषण की निगरानी हो।
- यूनिफॉर्म और स्टडी किट: हर बच्चे को एक जैसी ड्रेस मिलेगी जो जीविका दीदियों के माध्यम से वितरित हो रही है। किट में किताब, कॉपी, खिलौना, पानी की बोतल और अन्य जरूरी सामान शामिल होंगे। इससे बच्चे खेल-खेल में सीखेंगे और स्कूल जैसा अनुशासन बनेगा।
- केंद्रों का सौंदर्यीकरण: दीवारों पर फूल, फल, जानवर और पक्षियों की तस्वीरें बनाई जाएँगी ताकि रंगीन माहौल से बच्चे आकर्षित हों। ये बदलाव आध्यात्मिक और शैक्षणिक अनुभव देंगे।
मंत्री मदन सहनी ने कहा, "बच्चों को पौष्टिक आहार के साथ शिक्षा की नींव मजबूत करनी है। यह योजना बच्चों को स्मार्ट बनाएगी और परिवारों को जागरूक करेगी।" वर्तमान में बिहार में 1.38 लाख से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र हैं जो 1.33 मिलियन से ज्यादा बच्चों को कवर करते हैं।
चुनाव के बाद नियमित रूप से शुरू होने वाली यह व्यवस्था 2025-26 सत्र से पूर्ण रूप ले लेगी। जीविका दीदियों के जरिए ड्रेस वितरण पहले ही कई जिलों में शुरू हो चुका है और जहाँ बच्चे यूनिफॉर्म पा चुके हैं, वहाँ पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। स्टडी किट का वितरण भी जल्द होगा। केंद्रों को रंगीन बनाने का काम दो साल में पूरा होगा।
समाज कल्याण विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पोषाहार के साथ शिक्षा को जोड़ा जाए। इससे बच्चों की उपस्थिति बढ़ेगी और पोषण स्तर सुधरेगा। बिहार में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्टफोन ऐप के जरिए डिजिटलाइजेशन भी किया जा रहा है लेकिन चुनौतियाँ जैसे भाषा बाधा और तकनीकी समस्या बनी हुई हैं।
यह पहल बच्चों को शिक्षा और पोषण से जोड़ेगी, जिससे ग्रामीण इलाकों में ड्रॉपआउट रेट कम होगा। सरकार का दावा है कि रंगीन केंद्र और स्टडी किट से बच्चे पढ़ाई में रुचि लेंगे। लेकिन कार्यकर्ताओं की कमी, बजट की तंगी और डिजिटल ट्रेनिंग की जरूरत चुनौतियाँ हैं। हाल ही में बिहार सरकार ने आंगनबाड़ी वर्कर्स की सैलरी बढ़ाई (₹20,105 मासिक) जो इस योजना को आगे और मजबूत करेगी। यह ICDS का विस्तार है जो 1975 से चल रहा है और अब प्री-स्कूल एजुकेशन को जोड़ रहा है। अधिक जानकारी के लिए समाज कल्याण विभाग की वेबसाइट चेक करें।