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12-Sep-2025 10:09 AM
By First Bihar
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनावों की तारीख नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति तेज कर दी है। हर पार्टी का फोकस अब राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुस्लिम वोटरों पर केंद्रित हो गया है, जो लंबे समय से राजनीतिक समीकरणों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। 2022 में नीतीश कुमार सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वे के अनुसार, बिहार की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 17.7 प्रतिशत है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार 16.9 प्रतिशत थी। यह वृद्धि दर्शाती है कि मुस्लिम वोट बैंक का असर भविष्य की राजनीति में और अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से लगभग 87 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20% से अधिक है। इसके अलावा, 47 सीटों पर मुस्लिम आबादी 15-20% के बीच है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुस्लिम समुदाय कई क्षेत्रों में चुनावी परिणामों को पलटने की क्षमता रखता है। बिहार का सीमांचल इलाका जिसमें अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया शामिल हैं, मुस्लिम बहुल क्षेत्र माना जाता है। किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38% है। इन चार जिलों में कुल 24 विधानसभा सीटें आती हैं, जो राजनीतिक दलों के लिए निर्णायक मानी जाती हैं।
पारंपरिक रूप से बिहार के मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की ओर रहा है। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने लंबे समय तक इस वर्ग के बीच मजबूत पकड़ बनाए रखी है। वहीं नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को मुस्लिम समुदाय से औसतन 5% वोट शेयर मिलता रहा है। राजनीतिक गठबंधनों में बदलाव के साथ मुस्लिम वोटों के रुझान में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है।
2014 लोकसभा चुनाव में जब JDU ने वामपंथी दलों से गठजोड़ किया, तो उसे 23.5% मुस्लिम वोट मिले थे लेकिन 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन के चलते यह वोट शेयर गिरकर क्रमशः 6% और 12% पर आ गया। वहीं,2024 के लोकसभा चुनाव में RJD-कांग्रेस गठबंधन को मुस्लिम वोटों का करीब 87% समर्थन मिला। 2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार और लालू यादव ने हाथ मिलाया, तब महागठबंधन को मुस्लिम वोटों का लगभग 80% समर्थन मिला था। हालांकि, 2020 से पहले नीतीश कुमार के फिर से भाजपा से गठजोड़ करने के बाद यह समर्थन गिरकर 5% रह गया।
2020 विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन (RJD+कांग्रेस+वामदल) को 76% मुस्लिम वोट प्राप्त हुए थे। इन आंकड़ों से साफ है कि मुस्लिम मतदाता भाजपा के नेतृत्व वाले NDA से दूरी बनाए रखते हैं और कांग्रेस-RJD गठबंधन को प्राथमिकता देते हैं। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, सभी दल सीमांचल और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सक्रिय हो चुके हैं। AIMIM, RJD, कांग्रेस, JDU और BJP सभी इस वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपना रहे हैं।
हालांकि AIMIM जैसे दल सीमांचल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं, लेकिन बहुसंख्यक मुस्लिम वोट आज भी बड़े राष्ट्रीय या क्षेत्रीय गठबंधनों की ओर ही जाता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या मुस्लिम मतदाता इस बार फिर से RJD-कांग्रेस गठबंधन के साथ जाते हैं या राजनीतिक बदलाव की लहर कुछ नया इतिहास लिखती है।