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03-Mar-2025 11:54 AM
By FIRST BIHAR
Bihar Politics: सुप्रीम कोर्ट से सदस्यता बहाल करने का आदेश जारी किए जाने के बावजूद आरजेडी के पूर्व एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता अबतक बहाल नहीं हो सकी है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधान परिषद को सुनील सिंह की सदस्यता खत्म करने वाले आदेश रद्द करते हुए उनकी सदस्यता को फिर से बहाल करने का आदेश दिया था। अब जब बिहार विधानमंडल का बजट सत्र शुरू हो गया है, सुनील सिंह ने सभापति को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की याद दिलाई है।
दरअसल, विधान परिषद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिमिक्री करने के बाद विधान परिषद की आचार समिति ने आऱजेडी एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता को रद्द कर दिया था। इस फैसले को चुनौती देते हुए सुनील सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने सुनील सिंह की मिमिक्री को सही नहीं ठहराया था लेकिन कहा था कि सिर्फ इसके लिए किसी की सदस्यता नहीं रद्द की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनील सिंह की सदस्यता फिर से बहाल करने का आदेश विधान परिषद को दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने के बावजूद विधान परिषद से अबतक सुनील सिंह की सदस्यता बहाल नहीं की गई है। अब जब बजट सत्र की शुरूआत हो गई है, सुनील सिंह ने सभापति अवधेश नारायण सिंह को पत्र लिखा है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उनकी सदस्यता को फिर से बहाल करने की मांग की है।
सुनील सिंह ने लिखा, आदरणीय महोदय, मेरे पत्र दिनांक 26.02.2025 को आगे बढ़ाते हुए, जो आपके सम्मानित कार्यालय को पहले ही प्राप्त हो चुका है, मैं एक बार फिर सम्मानपूर्वक अनुरोध करता हूं कि डॉ. सुनील कुमार सिंह बनाम बिहार विधान परिषद (सचिव के माध्यम से) और अन्य, 2024 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 530 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 25.02.2025 के फैसले के अनुपालन में, बिहार विधान परिषद में मेरे सदस्यों को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए।
आपका सम्मानित कार्यालय संविधान और कानून के शासन को कायम रखने के लिए जाना जाता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मेरी बहाली के संबंध में एक स्पष्ट और बाध्यकारी निर्देश जारी किया है, जैसा कि नीचे दिया गया है. पैरा 88(ई): "याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से बीएलसी के सदस्य के रूप में बहाल करने का निर्देश दिया जाता है।"
भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के अनुसार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सभी आदेश पूरे देश में बाध्यकारी हैं और उनका अक्षरश: और भावना दोनों में तुरंत पालन किया जाना चाहिए। इस फैसले को लागू करने में किसी भी देरी को बाध्यकारी संवैधानिक निर्देश का अनुपालन न करना माना जा सकता है और यह अदालत की अवमानना हो सकती है। आपके ध्यान में यह लाना भी उचित है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय पहले ही यह व्यवस्था दे चुका है कि विधायी निकाय का पीठासीन अधिकारी जवाबदेह है और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अधीन है।
इसलिए, मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मेरी बहाली को जल्द से जल्द औपचारिक रूप से अधिसूचित किया जाए ताकि मैं 28/02/2025 से शुरू होने वाले बजट सत्र में सार्वजनिक चिंता का मुद्दा उठा सकूं। आपके त्वरित संदर्भ और आवश्यक अनुपालन के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 25.02.2025 के फैसले की एक प्रति संलग्न है। इसलिए, मैं, एक बार फिर, मेरी सदस्यता को तत्काल प्रभाव से बहाल करने के लिए आपका तत्काल ध्यान आकृष्ट करता हूं।