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27-Apr-2020 01:01 PM
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DESK : आज लॉकडाउन का 34 वां दिन है. लोग अपने घरों में कैद हो कर रह गए हैं. कोरोना वायरस ने दुनिया में ऐसा आतंक मचाया की लोगों की जीवन शैली ही बदल गई. दुनिया के इतिहास में शायद ये पहला मौका है जब ज्यादातर देशों को लॉक डाउन से गुजरना पड़ा है. इंसान लॉक डाउन में जहां घर में कैद हो गया है, वहीं पृथ्वी पर मौजूद जीव-जंतु, पेड़-पौधे मानो आजाद हो गए है. ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति चैन की सांस ले रही है. इस बदलाव को आप भी अपने घरों के बाहर झांक कर देख और महसूस कर सकते है.
अपने-अपने घरों में कैद होकर हमने पृथ्वी और मानव जाती के लिए एक बहुत बड़ा काम कर दिया है जिसे करने की कोशिश दुनिया भर के वैज्ञानिक और पर्यावरण संरक्षण में लगे लोग कर रहे थे. जी हां, हम यहां पृथ्वी की ओजोन परत पर बात कर रहे हैं.
पृथ्वी की ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा होल खुदबखुद ठीक होने लगा है. वैज्ञानिकों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि आर्कटिक के ऊपर 10 लाख वर्ग किलोमीटर का बड़ा छेद बंद हो रहा है. यह अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा छेद था. इस महीने की शुरुआत में इस छेद का पता लगा था. माना जा रहा था कि ये होल North Pole पर कम तापमान के चलते बना था.
आपको बता दें, ओजोन परत सूर्य की खतरनाक अल्ट्रावाईलेट रेज (पराबैगनी किरणों) को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकता है. यही अल्ट्रावाईलेट रेज त्वचा की कैंसर की वजह होती है. अगर यह होल south की तरफ बढ़ जाता तो लोगों के लिये बड़ा खतरा हो सकता था. धरती के आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर पोलर वर्टेक्स बना हुआ था. जो अब खत्म हो गया है. नॉर्थ पोल के ऊपर बहुत ऊंचाई पर स्थित स्ट्रेटोस्फेयर पर बन रहे बादलों की वजह से ओजोन लेयर पतली हो रही थी.
ओजोन लेयर में हुए छेद के पीछे वैज्ञानिक मुख्यतः तीन सबसे बड़े कारण बता रहे है.ये तीन कारण बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स है. इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ गई थी. इनकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकलते हैं. यही एटम ओजोन लेयर को पतला कर रहे थे. जिसकी वजह से ओजोन छेद बड़ा होता जा रहा था. इसमें प्रदूषण औऱ इजाफा करता लेकिन लॉकडाउन में इस इजाफे को रोक लिया.
ओजोन लेयर का अध्ययन करने वाले कॉपनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के निदेशक विनसेंट हेनरी ने कहा कि “हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण कम करें. लेकिन इस बार ओजोन में जो छेद हुआ है वो पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है. हमें स्ट्रैटोस्फेयर में बढ़ रहे क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर को कम करना होगा. आखिरकार क्लोरीन और ब्रोमीन का स्तर कम हुआ और ओजोन लेयर का छेद भर गया”.