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13-Sep-2020 03:40 PM
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PATNA : भगवान महावीर की जन्मस्थली और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. जिस धरती पर भगवान बुद्ध का 3 बार आगमन हुआ उस भूमि से रघुवंश बाबू लगातार पांच बार सांसद चुनकर आएं. रघुवंश बाबू के कारण ही कई दशकों से वैशाली राजद का मजबूत गढ़ माना जाता है. आइये जानते हैं दिवंगत राजनेता के जीवन से जुड़ीं कुछ अनसुनी कहानियों के बारे में...
राष्ट्रीय जनता दल के दिग्गज नेता रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून 1946 को वैशाली के शाहपुर में हुआ था. डॉ. प्रसाद ने बिहार यूनिवर्सिटी से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी.
अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया. 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया। 1977 से 1990 तक वे बिहार राज्यसभा के सदस्य रहे.
1977 से 1979 तक वे बिहार राज्य के ऊर्जा मंत्री रहे. इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया. 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष रहे. 1990 में बिहार विधानसभा के सहायक स्पीकर का पदभार भी उन्होंने संभाला था.
लोकसभा के सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1996 से प्रारंभ हुआ. वे 1996 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुए और उन्हें बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया.
लोकसभा में दूसरी बार वे 1998 में निर्वाचित हुए और 1999 में तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. इस कार्यकाल में वे गृह मामलों की समिति के सदस्य रहे. 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे.
इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की. 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी लहर में रघुवंश बाबू अपनी सीट नहीं बचाए पाएं और इस चुनाव में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा.
रघुवंश बाबू को किताबों से बड़ा लगाव था. वो अक्सर किताब पढ़ते रहते थें. खाली समय में रघुवंश बाबू म्यूजिक सूना करते थे. इसके आलावा वह योग और कसरत भी करते थे.
रघुवंश बाबू ने जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों का भी भ्रमण किया. 16 June 1966 को रघुवंश बाबू की शादी हुई. इनकी एक बेटी और दो बेटे हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रघुवंश बाबू ने अपने जीवन काल में कई उतार-चढ़ाव देखें. डिजिटल वेबसाइट लल्लन टॉप के मुताबिक "एक बार बिहार के सीतामढ़ी में छात्र आंदोलन जोर पकड़ रहा था. रेलवे लाइन के पास के अपने कमरे को छोड़कर कॉलेज के होस्टल आ गए थे. उस समय रघुवंश बाबू के पास कुछ किताबें, एक जोड़ी धोती-कुरता और एक गमछे के अलावा संपति के नाम पर कुछ नहीं था."
इसी रिपोर्ट के मुताबक "कहते हैं कि उस दौर में रघुवंश प्रसाद सिंह की शाम कॉलेज के सामने बनी सहयोगी प्रेस के बाहर बैठकी जमाते बीता करती. भूजा फांकते हुए. उस दौर में रघुवंश प्रसाद के करीबी बताते हैं कि तनख्वाह इतनी भी नहीं थी कि घर पर खर्च भेजने के बाद दोनों समय कायदे से खाना खाया जा सके. सहयोगी प्रेस के सामने फांका गया भूजा ही रात का खाना हुआ करता था. उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि महज चार साल के भीतर यह लेक्चरर सूबे में मंत्री बन जायेंगे."
रघुवंश प्रसाद 1977 में पहली मर्तबा विधायक बने थे. बेलसंड से उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा. इस बीच 1988 में कर्पूरी ठाकुर का अचानक निधन हो गया. सूबे में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी. लालू प्रसाद यादव कर्पूरी के खाली जूतों पर अपना दावा जता रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस गाढ़े समय में लालू का साथ दिया. यहां से लालू और उनके बीच की करीबी शुरू हुई.
1990 में बिहार विधानसभा में रघुवंश प्रसाद सिंह 2,405 के करीबी मार्जिन से कांग्रेस के दिग्विजय प्रताप सिंह से चुनाव हार गए थे. रघुवंश ने इस हार के लिए जनता दल के भीतर के ही कई नेताओं को जिम्मेदार ठहराया. रघुवंश चुनाव हार गए थे लेकिन सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा.
लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी. लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया. 1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए. ऊर्जा और पुनर्वास का महकमा दिया गया.
1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा चुनाव लड़े थे. रघुवंश प्रसाद सिंह चुनाव में जीत हासिल कर पटना से दिल्ली आ गए. केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई तो देवेगौड़ा पीएम बने. रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए. पशु पालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार दिया गया.
अप्रैल 1997 में जब देवगौड़ा की कुर्सी गई तो इंद्र कुमार गुजराल नए पीएम बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया.
रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 में केंद्र की राजनीति में आ चुके थे लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच मिली. 1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया. एक दिन संसद की कार्यवाही में जाते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह को सत्ता पक्ष के अरुण जेटली ने रोक लिया. मुस्कुराते हुए बोले- ‘तो कैसा चल रहा है वन मैन ऑपोजिशन?’
रघुवंश प्रसाद सिंह को समझ में नहीं आया. रघुवंश के मुंह पर अनभिज्ञता के भाव देखते हुए अरुण जेटली ने उस दिन का हिन्दुस्तान टाइम्स खिसका दिया. अखबार में चार कॉलम में रघुवंश प्रसाद की प्रोफाइल छपी थी. इसका शीर्षक था, “वन मैन ऑपोजिशन.” 1999 से 2004 के रघुवंश प्रसाद संसद के सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक थे. उन्होंने एक दिन मेंकम से कम 4 और अधिकतम 9 मुद्दों पर अपनी पार्टी की राय रखी थी. यह एक किस्म का रिकॉर्ड था. संसद में गणित के इस प्रोफ़ेसर के तार्किक भाषणों ने उन्हें नई पहचान दिलवाई. उस दौर में सत्ता पक्ष के सांसद यह कहते पाए जाते थे कि विपक्ष की नेता भले ही सोनिया गांधी हों, लेकिन सरकार को घेरने में रघुवंश प्रसाद सिंह सबसे आगे रहते हैं.
2004 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 22 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और यूपीए में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी थी. इस लिहाज से उसके खाते में दो कैबिनेट मंत्रालय आए. पहला रेल मंत्रलय जिसका जिम्मा लालू प्रसाद यादव के पास था. दूसरा ग्रामीण विकास मंत्रालय जिसका जिम्मा रघुवंश प्रसाद सिंह के पास आया. रघुवंश प्रसाद सिंह ने रोजगार गारंटी कानून को बनवाने और पास करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
2014 के लोकसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली में त्रिकोणीय मुकाबले में घिर गए. 2009 में रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले विजय शुक्ला जेल में थे और उनकी पत्नी अनु शुक्ला बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतर गईं. मोदी लहर ने भी उनका भरपूर साथ दिया. रामकिशोर सिंह 99,267 वोट से यह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. रघुवंश प्रसाद सिंह को लगातार पांच जीत के बाद हार का सामना करना पड़ा.