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26-Jan-2022 03:01 PM
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PATNA: बिहार की डबल इंजन वाली सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर दिलचस्प खेल हो रहा है। सूबे में शिक्षा के बजाय करप्शन के केंद्र बन चुके विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच पर राज्यपाल गरम हो गये हैं। राज्यपाल ने बिहार सरकार को पत्र लिखा है-मेरे परमिशन के बगैर भ्रष्टाचार की जांच कैसे हो रही है। इसे तत्काल रोकिये। हम आपको बता दें कि बिहार के राज्यपाल ही विश्वविद्यालयों के प्रमुख यानि चांसलर होते हैं। बिहार के कई यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार के मामलों में राजभवन की संदिग्ध भूमिका पहले ही सामने आ चुकी है। चर्चा ये है कि नीतीश कुमार राज्यपाल के खिलाफ केंद्र के पास गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
राज्यपाल ने पूछा-भ्रष्टाचार की जांच कैसे हो रही है
दरअसल बिहार के ज्यादातार यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार के कई काले कारनामे सामने आ चुके हैं. बिहार सरकार की स्पेशल विजलेंस यूनिट ने मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के ठिकानों पर छापा मारा था तो करप्शन का कारखाना सामने आ गया था. कुलपति राजेंद्र प्रसाद के ठिकानों से करोड़ों की नगदी औऱ संपत्ति के कागजात मिले थे. उनके पास से यूनिवर्सिटी में हुए भारी घपले के सबूत भी बरामद हुए थे. वहीं, अरबी फारसी यूनिवर्सिटी से लेकर दूसरे कई यूनिवर्सिटी में करप्शन के दर्जनों गंभीर मामले सामने आये थे. बिहार सरकार की स्पेशल विजलेंस यूनिट विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच करने में लगी है.
लेकिन करप्शन की इस जांच ने राजभवन को बेचैन कर दिया है. राजभवन ने कहा है कि विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच गलत है. ये यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता पर हमला है. राज्यपाल के प्रधान सचिव आर एल चोंगथू ने राजभवन की ओऱ से बिहार के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. पत्र में कहा गया है कि राज्यपाल की अनुमति के बगैर यूनिवर्सिटी में किसी तरह का हस्तक्षेप करना पूरी तरह से गैरकानूनी है. फिर कैसे बिहार सरकार की स्पेशल विजलेंस यूनिट यूनिवर्सिटी से भ्रष्टाचार से संबंधित कागजात मांग रही है.
राज्यपाल ने कहा-भ्रष्टाचार की जांच से भय का माहौल
राज्यपाल के प्रधान सचिव द्वारा बिहार सरकार के मुख्य सचिव को भेजी गयी चिट्ठी बेहद दिलचस्प है. राजभवन कह रहा है कि करप्शन की जांच से विश्वविद्यालयों में भय का माहौल उत्पन्न हो गया है. पदाधिकारियों और कर्मचारियों पर मानसिक दबाव पड़ रहा है. यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का माहौल खराब हो रहा है. बिहार के यूनिवर्सिटी स्वायत्त हैं औऱ जांच से उनकी स्वायत्तता पर कुठाराघात हो रहा है. राजभवन कह रहा है कि अगर जांच ही करनी है तो हमसे परमिशन लो. भ्रष्टाचार निरोधक कानून में भी ये उल्लेखित है कि राज्यपाल की मंजूरी से ही कोई भी जांच हो सकती है.
भ्रष्टाचार को राजभवन का संरक्षण?
राज्यपाल के प्रधान सचिव के इस पत्र ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार को सीधे राजभवन का संरक्षण मिला हुआ है. पिछले दिनों हुए लगातार वाकये ऐसे गंभीर सवाल खड़ा कर रहे हैं. मगध यूनवर्सिटी के वीसी के ठिकानों पर छापे में बिहार सरकार की विशेष निगरानी इकाई ने करोड़ों की रकम औऱ भ्रष्टाचार का पूरा पिटारा खोल दिया था. पूरी यूनिवर्सिटी भ्रष्टाचार का अड्डा बन कर रह गयी थी. लेकिन राजभवन ने आरोपी कुलपति राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. बिहार सरकार ही नहीं बल्कि बीजेपी के सांसद सुशील मोदी तक ने राजभवन से मांग की थी कि आरोपी कुलपति के खिलाफ कार्रवाई हो लेकिन राज्यपाल ने वीसी राजेंद्र प्रसाद को दो दो दफे एक-एक महीने का मेडिकल लीव दे दिया. ताकि वे आराम से निगरानी विभाग से छिपे रह सके. इस बीच कुलपति जमानत के लिए कोर्ट पहुंच गये. हालांकि कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है.
नीतीश के पत्र पर भी कोई कार्रवाई नहीं
बिहार के एक औऱ यूनिवर्सिटी अरबी फारसी विश्वविद्यालय में भारी गडबड़झाला सामने आया था. इस यूनिवर्सिटी में नये नियुक्ति हुए कुलपति मो. कुद्दुस ने राजभवन औऱ बिहार सरकार को पत्र लिखकर जानकारी दी कि उनसे पहले प्रभार में रहे कुलपति एसपी सिंह ने करोडों का घोटाला किया है. एसपी सिंह मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति हैं और राजभवन ने उन्हें चार-चार यूनिवर्सिटी का प्रभार दे रखा था. उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने के बावजूद राजभवन ने उन्हें बेस्ट कुलपति का अवार्ड दे दिया. इस बीच नीतीश कुमार ने अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति मो. कुद्दुस के पत्र में लगाये गये आरोपों की जांच कराने के लिए राजभवन को पत्र लिखा लेकिन राजभवन मुख्यमंत्री के पत्र को ही दबाकर बैठ गया. हालत ये हुई कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुलपति मो. कुद्दुस को ही इस्तीफा देकर जाना पड़ा. राजभवन ने भ्रष्टाचार की जांच के बजाय मो. कुद्दुस से ही सवाल जवाब करना शुरू कर दिया था.
केंद्र के सामने गुहार भी बेकार
दिलचस्प बात ये है कि बिहार में डबल इंजन वाली सरकार है. एक इंजन पटना में है तो दूसरा दिल्ली में. बिहार सरकार ने दिल्ली की अपनी ही गठबंधन की सरकार को राज्यपाल के कारनामों की जानकारी दी. इसके बाद राज्यपाल को दिल्ली तलब किया गया था. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उनसे भ्रष्टाचार को लेकर बात की थी लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच नीतीश कुमार ने अपने शिक्षा मंत्री विजय चौधरी को राजभवन भेजकर राज्यपाल को मैसेज दिलवाया था कि वे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कराये. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
राजभवन पर लगे दाग
गंभीर बात ये भी है कि सीधे राजभवन पर भी आरोप लग रहे हैं. अरबी फारसी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति मो. कुद्दुस ने अपने पत्र में कहा था कि राजभवन से जुड़ा व्यक्ति उन्हें गलत तरीके से पैसे भुगतान करने को धमका रहा है. मो. कुद्दुस ने उस व्यक्ति का नंबर तक दिया था. राजभवन से संबंधित कई औऱ बातें सामने आयी हैं. सवाल ये है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से लेकर बिहार की नीतीश सरकार राज्यपाल को लेकर खामोश क्यों है.