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02-Feb-2020 03:03 PM
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BHAGALPUR : मेयर मैडम अपने ही खेल में अब फंसती हुई नजर आ रही हैं. मेयर की कुर्सी पाने के लिए जो इन्होंने जाल बुना था. अब उस जाल में खुद उलझती हुई नजर आ रही हैं. इन दिनों सुर्ख़ियों में भागलपुर की मेयर छाई हुई हैं. नगर निगम चुनाव में अपनी उम्र छुपाकर मेयर की कुर्सी हथियाने वाली मैडम के खिलाफ पुलिस अब आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी हुई है. मैडम की इस बड़ी झूठ पर पर्दा डालने वाले SDO साहेब भी अब बेनकाब होते हुए दिखाई दे रहे हैं. इतना ही नहीं कई पुलिसवालों की भूमिका से भी पर्दा उठने वाला है.
क्या है पूरा मामला
गलत डेट ऑफ़ बर्थ देकर भागलपुर की मेयर बनी सीमा साहा के झूठ पर पर्दा डालने और उन्हें बचाने में तत्कालीन पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों ने मैडम की हर तरीके से मदद की थी. जून 2017 में पहले तत्कालीन सदर एसडीओ ने गलत रिपोर्ट देकर आरोपी मेयर को बचाने की कोशिश कर मामले की लीपापोती कर दी. फिर जब दूसरे तत्कालीन सदर एसडीओ ने नवंबर 2017 में मेयर की झूठी जानकारी की पोल खोलने वाली जांच रिपोर्ट दी तो वह एसएसपी ऑफिस से गायब हो गई. इसका खुलासा सिटी एसपी सुशांत कुमार सरोज की जांच में हुआ है. अगर यह रिपोर्ट 2017 में ही पुलिस को मिल जाती है तो मेयर का खुलासा पहले ही हो जाता.
मेयर को बचाने के लिए SSP ऑफिस में दाबी गई रिपोर्ट
मेयर को बचाने को यह रिपोर्ट एसएसपी ऑफिस में दबा दी गई थी. 23 सितंबर 2019 को एसएसपी आशीष भारती ने इस केस की समीक्षा करते हुए रिपोर्ट मांगी. इसके बाद तत्कालीन एसडीओ की रिपोर्ट को जांच का आधार बनाया और आरोपी मेयर को दोषी मान केस ट्रू किया गया. सिटी डीएसपी की रिपोर्ट से संतुष्ट सिटी एसपी सुशांत कुमार सरोज ने भी रिपोर्ट-टू जारी किया और मेयर को गिरफ्तार न कर नोटिस देने का निर्देश दिया था. पहले भी मेयर को बचाने की कोशिश हुई थी, तत्कालीन एसडीओ अपनी जांच में मेयर को क्लीन चिट दे चुके थे.
अपनी बेटी से सिर्फ 8 साल बड़ी हैं मेयर
पूर्व उप महापौर प्रीति शेखर ने सीमा साहा पर उम्र छिपाने का आरोप लगाते हुए तत्कालीन डीआइजी विकास वैभव से शिकायत की थी. इसमें उन्होंने कहा था कि इशाकचक के भीखनपुर शिवशंकर सहाय पथ निवासी सीमा साहा और उनकी बड़ी बेटी की उम्र में सिर्फ आठ साल का अंतर है. शपथ पत्र में सीमा साहा की उम्र 27 वर्ष और जन्म तिथि पांच फरवरी 1989 दिखाई गई है. पूर्व उप महापौर वर्तमान वार्ड पार्षद प्रीति शेखर का कहना है कि सत्य प्रमाणित करने में ढाई साल लग गए. हमारी लड़ाई निजी नहीं थी,पर सच हर कोई जानना चाहता है.