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15-Apr-2025 07:30 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार की राजनीति को लेकर एक कहावत काफी चरितार्थ होती है। वह कहावत है कि ऊंट किस करवट बैठेगा वह सिर्फ उसी को मालूम होता है बाकी सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं। अब पिछले कुछ दिनों से जो सियासी सरगर्मी बढ़ी है उसके बाद इस बात की चर्चा तेज है कि बिहार विधानसभा चुनाव में कोई नया खेल होगा क्या ? तो आइए पहले उस पूरे प्रकरण को हवा कैसे मिली उसे समझते हैं उसके बाद इसकी हकीकत और संभावनाओं पर भी नजर डालते हैं।
कहां से शुरू हुई चर्चा
दरअसल, बिहार में पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कभी मोदी कैबिनेट में शामिल रहे एक वरिष्ठ नेता ने यह कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अब उप प्रधानमंत्री बनना चाहिए। अब उनकी काबिलियत मुख्यमंत्री से काफी अधिक हो गई है। वह विकासशील नेता हैं ऐसे में उन्हें उप प्रधानमंत्री बनना चाहिए। हालांकि, जिस नेता ने यह बयान दिया है उनका खुद इस बार लोकसभा चुनाव में अपनी जीत हुई सीट से पत्ता कट गया और एक संगठन के नेता को यहां से टिकट मिला। जिसका उन्होंने विरोध भी किया और यहां भी यह कहावत थोड़ी सटीक बैठती है कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर को फायदा। अब ऐसे में इनके बयानों को कितना तबज्जों देना है यह हम आपके विवेक पर छोड़ते हैं।
नीतीश कैबिनेट क्वे मंत्री ने भी दी हवा !
अब आते हैं इसके बाद वाले दूसरे बयान पर। यह बयान नीतीश कैबिनेट के मंत्री और खुद को पिछड़े समाज का हितैषी कहे जाने वाले नेता जी ने दिया वैशाली में एक कार्यक्रम के दौरान दिया। उन्होंने यह कहा कि भैया यह NDA है और यहां कुछ भी हो सकता है। उसमें भी भाजपा की बात की जाए तो यही कहा जा सकता है कब कौन से कार्यकर्ता को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया जाए यह कहा नहीं जा सकता है। अब उनके इस बयान का भी दो मतलब निकलता है एक तो वह की हो सकता है कि भाजपा अंदरखाने में इस बात की थोड़ी चर्चा हुई हो कि नीतीश कुमार को उप प्रधानमंत्री बनाए जाने पर विचार किया जा सकता है। लेकिन दूसरा मतलब निकाला जाए तो यह कहा जा सकता है नेता जी यह बात शायद खुद के बारे में कह रहे हो क्योंकि उन्हें यह शायद ही मालूम था कि संगठन अचानक से उनके ऊपर किस कदर मेहरबान होगी और सीधे मंत्री बना दिए जाएंगे। क्योंकि पिछले 15 सालों में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो जिस दिन खुद नीतीश कुमार फर्श पर आए हो भले ही उनकी पार्टी कभी कभार आगे पीछे होती रही है। लेकिन अपनी माहिर राजनीतिक समझ से वह हमेशा से ही अर्श पर पिछले 15 सालों से हनक के साथ बने हुए हैं।
आखिर इस समय क्यों आया सैनी का बयान ?
इसके बाद यदि तीसरी बात पर चर्चा करें तो हरियाणा के सीएम नयाब सैनी ने बिहार आकर यह बयान दिया कि जीत का पताका अब बिहार में लहराएगा और यह सम्राट चौधरी के नेतृत्व में लहराएगा। अब उनके इस बयान को बारीकी से समझा जाए तो इसके भी कई मतलब है। अब सीधा सा मतलब निकाला जाए तो कोई भी यह कह सकता है कि भाजपा नेता यह कह रहे हैं आगामी बिहार का चुनाव सम्राट चौधरी के नेतृत्व या चेहरे पर लड़ा जाएगा। लेकिन भाजपा की रणनीति को समझने वाले इस बातों पर पूरी तरह विश्वास न करें। अब आपके भी मन में यह सवाल होगा कि जब इतना कुछ साफ साफ कह दिया गया तो उसके बाद भी अब क्या बचा रह गया है तो आइए जानते हैं कि इसकी वजह क्या है ?
समीकरण में फीट होंगे सम्राट !
दरअसल, देश के अंदर जब लोकसभा का चुनाव हो रहा था तो उस वक्त बिहार भाजपा की कमान सम्राट चौधरी के हाथों में ही थी। इनसे ही सलाह मशवरा कर पार्टी ने कैंडिडेट भी तय किए थे। उस दौरान भी भाजपा के लिए सम्राट चौधरी बिहार में प्राइम फेस थे और पिछड़ों के बड़े नेता कहे जा रहे थे। लेकिन इसका रिजल्ट क्या रहा वह शायद ही अब भी बताने की जरूरत हो। आलम यह रहा कि पूरा शाहाबाद का इलाका जो भी भाजपा का गढ़ माना जाता था वहां भी सेंधमारी हो गई। ऐसे में भाजपा नेतृत्व ने इनसे प्रदेश नेतृत्व का जिम्मेदारी ली वापस ले ली। इसके बाद अब शायद आप यह कहें कि उनसे बड़ी जिम्देदारी तो दे दी गई डिप्टी सीएम की तो शायद आपको यहां भी थोड़ा रुकने और समझने की जरूरत है।
पहले भी हो चूका है टेस्ट !
सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम तो बनाया गया। लेकिन उन्हें ऐसे विभाग की जिम्मेदारी दी गई जिसका काम सिर्फ समन्वय बनाना होता है। इसके अलावा कुछ खास काम नहीं होता है।जिससे कि जनता को सीधा कोई फायदा पहुंचे। अब पार्टी को इससे यह फायदा हुआ कि सम्राट चौधरी के नाम पर पार्टी के साथ जो पिछड़ों को कुछ प्रतिशत वोट का जुड़ाव हुआ था। वह बना रहा और पार्टी ने बड़े ही चालाकी से साथ सम्राट को यह बताया कि आप खुद को कैसे तैयार करें। इतना ही नही भाजपा के अंदुरूनी सूत्र यह भी बताते हैं कि पार्टी ने उनके निगरानी के लिए ठीक उनके ही समकक्ष एक ऐसे नेता को बैठाया जिनपर भाजपा के अनुसांगिक संगठन का काफी भरोसा है और काफी मंझे हुए नेता और भाजपा के एक बड़े वोट बैंक पर अपनी छाप रखते हैं। इतना ही नहीं उन्हें काफी महत्वपूर्ण विभाग भी दिए गए हैं।
अब इन तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद यह पहलू यह भी आता है कि भाजपा ने पिछले कुछ महीनों में जहां भी बहुमत हासिल किया है वहां देखने वाली बात यह रही कि उनके मुख्यमंत्री चेहरे ऐसे रहे हैं जिनकी नाम की चर्चा काफी कम रही हो और दूसरी ओर सबसे महत्वपूर्ण और अहम बात यह कि उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के अनुसांगिक संगठनों के साथ रिश्ता रहा है भाजपा के मातृ संगठन के साथ रिश्ता रहा है। ऐसे में इन तमाम समीकरणों पर नजर जमने के बाद आप खुद विचार कर सकते हैं कि जिन नामों की चर्चा हो रही है वह सिर्फ हवा - हवाई बातें हैं या इसमें कुछ हकीकत भी है।