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31-May-2025 08:42 AM
By First Bihar
Kamakhya Temple : कामाख्या मंदिर में हर साल तीन दिनों तक एक विशेष परंपरा के तहत मंदिर के द्वार बंद रहते हैं और पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। यह निषेध केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गहराई से सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से भी जुड़ा हुआ है। यह परंपरा स्त्रीत्व के सम्मान, मासिक धर्म के प्राकृतिक चक्र और मातृशक्ति की गरिमा को समर्पित है।
माना जाता है कि इन तीन दिनों में मां कामाख्या स्वयं रजस्वला होती हैं। ऐसे समय में पुरुषों को मंदिर परिसर से दूर रखा जाता है — यह केवल प्रतिबंध नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति के प्रति श्रद्धा और संवेदना की एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
तीन दिवसीय अंतराल के बाद, चौथे दिन मंदिर की पवित्र 'शुद्धि' और 'स्नान' की रस्में पूरी की जाती हैं। इसके बाद मंदिर के कपाट पुनः श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। यह दिन ‘नवविवाह’ के समान एक नए आरंभ का प्रतीक होता है। इस अवसर पर देशभर से हजारों श्रद्धालु मां कामाख्या के दर्शन हेतु मंदिर पहुंचते हैं।
जहां आज भी मासिक धर्म को लेकर समाज में अनेक भ्रांतियां और वर्जनाएं मौजूद हैं, वहीं कामाख्या मंदिर का यह पर्व एक सशक्त धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यहां रजस्वला स्त्री को अशुद्ध नहीं, बल्कि पूजनीय माना जाता है। यह पर्व समाज को यह संदेश देता है कि प्राकृतिक प्रक्रियाएं न अपवित्र होती हैं, न लज्जाजनक — बल्कि वे सम्मान और स्वीकृति की अधिकारी हैं।