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20-Jun-2024 06:02 PM
By First Bihar
PATNA: पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें जातीय गणना के बाद आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का फैसला लिया गया था। पटना हाई कोर्ट ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है। बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि कोर्ट के फैसले से हमलोग आहत हैं। हमलोगों को पहले से ही संदेह था कि भाजपा के लोग किसी भी हालत में आरक्षण को रोकने का काम करेंगे। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी हमने यह बात कही थी।
तेजस्वी ने कहा कि बिहार में जब महागठबंधन की सरकार थी तब हमलोगों ने जातीय आधारित गणना कराई थी। तब बीजेपी के लोगों ने इसी तरह से कोर्ट में पीआईएल करवा कर इसे रुकवाने का प्रयास किया। अंत में हमलोगों की ही जीत हुई। हमलोगों ने सर्वे कराया। उसके बाद 75 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और आदिवासियों का बढ़ाया। ईब्लूएस को 10 प्रतिशत हमलोगों ने छोड़ा। नवम्बर में आरक्षण बढ़ाने का काम किया गया और दिसंबर में कैबिनेट और भारत सरकार से इसे शेड्यूल लाइन में तमिलनाडु के तर्ज पर डालने को कहा गया ताकि यह सुरक्षित रहे लेकिन अब 6 महीने हो गये लेकिन भाजपा और केंद्र सरकार ने अब तक इस काम को पूरा नहीं किया। मुख्यमंत्री भी चुप्पी साधे हुए हैं।
तेजस्वी ने कहा कि हमारी सरकार ने आरक्षण को बढ़ाया लेकिन सत्ता में बीजेपी के आते ही आरक्षण को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। तेजस्वी ने कहा कि हम माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अनुरोध करते हैं कि कई बार आपने प्रधानमंत्री जी का पैर पकड़े हैं इस बार भी पैर पकड़कर कम से कम शेड्यूल लाइन में डलबाने का काम करें। अगर नहीं हो तो हम यह प्रस्ताव भी देना चाहते हैं कि सर्वदलीय बिहार के लोग जाकर प्रधानमंत्री से मिले और मिलकर इसको अनुच्छेद 9 में डलवाने का काम करे।
तेजस्वी ने कहा कि वंचित,शोसित समाज को अधिकार मिलना चाहिए। जिसकी जितनी आबादी है उसके अनुसार लोगों को हक और अधिकार मिलना चाहिए। हमलोग तो इस लड़ाई को लड़े हैं आगे भी लड़ेंगे। यदि बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी तब राजद इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। मुख्यमंत्री को इस संबंध में चिट्ठी लिखेंगे कि प्रधानमंत्री से अनुरोध कीजिए और सर्वदलीय बैठक बुलाइए।
दरअसल, बिहार में महागठबंधन की सरकार ने जातीय गणना कराने के बाद आरक्षण की सीमा को 50 फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद किया गया था। सरकार ने 9 नवंबर 2023 को आरक्षण के दायरा को 15 फीसद बढ़ा दिया था। सरकार के स फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।
गौरव कुमार और अन्य लोगों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने इसी साल 11 मार्च सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रखा था। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने इन याचिकाओं पर लंबी सुनवाई की थी, जिसे आज सुनाया गया। कोर्ट ने आरक्षण का दायरा 50 फीसद से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने के फैसले को रद्द कर दिया है और कहा है कि पूर्व से निर्धारित आरक्षण की सीमा ही बिहार में लागू रहेगी।
बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली तत्कालीन महागठबंधन की सरकार ने राज्य में जाति आधारित गणना कराई थी। जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर ओबीसी, ईबीसी, दलित और आदिवासियों का आरक्षण 65 फीसद कर दिया था। आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को बिहार में सरकारी नौकरियों और उत्च शैक्षणिक संस्थानों में मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को मिलाकर कोटा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक कर दिया गया था।
बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली तत्कालीन महागठबंधन की सरकार ने राज्य में जाति आधारित गणना कराई थी। जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर ओबीसी, ईबीसी, दलित और आदिवासियों का आरक्षण 65 फीसद कर दिया था।
आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को बिहार में सरकारी नौकरियों और उत्च शैक्षणिक संस्थानों में मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को मिलाकर कोटा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत तक कर दिया गया था। सरकार के फैसले को यूथ फॉर इक्वैलिटी नाम की संगठन ने पटना हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने आरक्षण को बढ़ाने वाले इस कानून को रद्द कर दिया है।