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05-Mar-2025 07:12 AM
By First Bihar
हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक फिल्मों की बात की जाए, तो उसमें "शोले" का नाम जरूर शामिल होता है। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी यह फिल्म इस साल अपनी रिलीज के 50 साल पूरे कर रही है। इस खास अवसर को यादगार बनाने के लिए एक विशेष आयोजन किया जा रहा है।
आईफा में होगी शोले की विशेष स्क्रीनिंग
इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी (आईफा) अपनी 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर फिल्म "शोले" की एक खास स्क्रीनिंग आयोजित करने जा रहा है। यह आयोजन जयपुर के प्रतिष्ठित "राज मंदिर सिनेमा" में किया जाएगा, जो खुद भी इस साल अपनी गोल्डन जुबली मना रहा है। यह विशेष स्क्रीनिंग 9 मार्च को सुबह 11 बजे होगी, जिसमें फिल्म से जुड़े कलाकार, गायक और तकनीशियन अपने अनुभव साझा करेंगे। इस आयोजन में बॉलीवुड की कई मशहूर हस्तियां भी शामिल होंगी।
शोले और राज मंदिर सिनेमा: दो ऐतिहासिक जुबली का संगम
फिल्म "शोले" 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी और इसे हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे सफल फिल्मों में गिना जाता है। वहीं, जयपुर का "राज मंदिर सिनेमा" 1966 में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय मोहनलाल सुखाड़िया द्वारा स्थापित किया गया था और इसका उद्घाटन 1 जून 1976 को तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय हरिदेव जोशी ने किया था।
आईफा अपनी 25वीं वर्षगांठ "सिल्वर इन द न्यू गोल्ड" थीम के तहत मना रहा है, जिसमें "शोले" की यह स्क्रीनिंग एक महत्वपूर्ण आयोजन होगा। 8 मार्च को जयपुर एक्जीबिशन और कन्वेंशन सेंटर में आईफा डिजिटल अवार्ड्स का आयोजन किया जाएगा, जबकि 9 मार्च को आईफा अवार्ड्स का ग्रैंड फिनाले होगा। इस समारोह में भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ कार्यों और कलाकारों को सम्मानित किया जाएगा।
शोले: सिनेमा का ऐतिहासिक मील का पत्थर
"शोले" सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। यह फिल्म अपने दमदार किरदारों, संवादों और बेहतरीन निर्देशन के लिए जानी जाती है। फिल्म के मुख्य किरदारों में अमिताभ बच्चन (जय), धर्मेंद्र (वीरू), हेमा मालिनी (बसंती), संजीव कुमार (ठाकुर), जया बच्चन (राधा) और अमजद खान (गब्बर सिंह) शामिल थे।
फिल्म लेखक सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ने इस फिल्म की कहानी को लिखा था, जिसमें खासकर गब्बर सिंह का किरदार बेहद लोकप्रिय हुआ। शोले ने उस समय बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त धमाल मचाया था और यह फिल्म 1975 में "जय मां संतोषी" के बाद सबसे ज्यादा कमाई करने वाली दूसरी फिल्म बनी थी।
गोल्डन जुबली का जश्न क्यों खास है?
इस आयोजन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह सिनेमा के इतिहास में एक ऐसी फिल्म का उत्सव है, जो दशकों बाद भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है। 50 वर्षों के बाद भी "शोले" का प्रभाव जस का तस बना हुआ है, और अब इस फिल्म की खास स्क्रीनिंग के जरिए नई पीढ़ी भी इस ऐतिहासिक सिनेमाई अनुभव का आनंद ले सकेगी। जयपुर में होने वाला यह आयोजन न सिर्फ "शोले" बल्कि हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास का भी सम्मान है। यह फिल्म और इसका जादू आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा बना रहेगा।