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14-Aug-2025 12:21 PM
By Viveka Nand
Bihar News: बिहार के वरिष्ठतम पत्रकार व पद्मश्री से सम्मानित सुरेंद्र किशोर ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर इंदिरा गांधी सरकार के विवादास्पद निर्णयों की याद दिलाई है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जब केंद्र सरकार जज की नियुक्ति करती थी, तब क्या होता था. नेता-मंत्री को हाईकोर्ट का जज बना दिया जाता था. कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा सांसद बने बहरूल इस्लाम 1972 में हाईकोर्ट जज बने,1980 में सुप्रीम कोर्ट जज बने। जज के रूप में एक मुख्य मंत्री को राहत देते समय ऐसा तर्क दिया, जो ऐतिहासिक व अनोखा है. वी.आर. कृष्णा अय्यर 1957-59 में केरल के सी.पी.आई.नेता नम्बूदरीपाद के मंत्रिमंडल के सदस्य थे। अय्यर साहब 60 के दशक मेें केरल हाई कोर्ट के जज हुए। इंदिरा शासन के दौरान 1973 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने। सुरेंद्र किशोर कहते हैं..राजनीतिक पृष्ठभूमि वालों को जज बनाने के अपने फायदे होते हैं। लोगों को तब आश्चर्य हुआ था कि कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री रहा व्यक्ति भी जज बन गया।
जज साहब ने ध्यान रखने में थोड़ी कमी कर दी तो साढू को सजा दे दी
पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर इंदिरा सरकार की कुछ करतूतों की चर्चा की है. वे अपने सोशल मीडिया फेसबुक पर लिखा, '' केरल में कम्युनिस्ट सरकार के मंत्री थे कृष्णा अय्यर और बाद में बने सुप्रीम कोर्ट के जज। (याद रहे कि उन दिनों कोई काॅलेजियम नहीं बल्कि केंद्र सरकार ही जज बनाती थी।) जज बनाने का कांग्रेस सरकार का उद्देश्य आम तौर पर यह भी रहता था कि समय आने पर हमारा ध्यान रखना।जब कृष्णा अय्यर ने ध्यान रखने में थोड़ी कमी कर दी तो इंदिरा सरकार ने जज के साढ़ू को सजा दे दी। पढ़िए पूरी कहानी।
रास सांसद पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में जज बने
बहरूल इस्लाम सन 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा के सदस्य बने थे। सन 1972 में हाईकोर्ट जज बने।1980 में सुप्रीम कोर्ट जज बने।जज के रूप में एक मुख्य मंत्री को राहत देते समय ऐसा तर्क दिया,जो ऐतिहासिक व अनोखा है।मुख्य मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे।जज बहरूल इस्लाम ने कहा कि चूंकि लोक अभियोजक मुख्य मंत्री के खिलाफ अभियोजन चला रहे हैं,इसलिए यह न्यायिक प्रक्रिया का निरर्थक व्यायाम है।लोक अभियोजक को मुख्य मंत्री ही बहाल करता है।कोई सेवक अपने मालिक के खिलाफ ईमानदारी से मुकदमा नहीं चला सकता।इसलिए मुख्य मंत्री को इस केस से मुक्त किया जाता है। (उस जजमेंट की काॅपी पत्रकार सुरेंद्र किशोर के संदर्भालय में मौजूद है।) इस निर्णय के बाद कांग्रेस ने बहरूल इस्लाम को एक बार फिर राज्य सभा सदस्य बना दिया था।
चर्चित पुस्तक ‘‘आपातकाल एक डायरी’’
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के तब के संयुक्त सचिव बिशन टंडन ने यह डायरी लिखी है। 26 अगस्त 1975. प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सांसदी केस में जब सुप्रीम कोर्ट के जज कृष्णा अय्यर ने पी.एम. को (पूरी) राहत नहीं दी तो पी.एम.ने जज के आई.ए.एस. साढ़ू को दी गयी शासकीय राहत तुरंत वापस ले ली। बिशन टंडन अपनी डायरी (भाग-2) में लिखते हैं.. (सुप्रीम कोर्ट के जज कृष्णा अय्यर के साढ़ू )‘‘आई.ए.एस.शंकरण का दिल्ली में टर्म समाप्त हो चुका है। पर,श्रम मंत्री उसे रखना चाहते हैं। बोर्ड के सामने मामला गया तो उसने सिफारिश की कि शंकरण को वापस (तमिलनाडु काॅडर) जाना चाहिए। प्रधान मंत्री ने भी पहले बोर्ड की सिफारिश मान ली। इतना हो जाने के बाद रजनी पटेल ने प्रधान मंत्री को बताया कि शंकरण जस्टिस कृष्णा अय्यर के साढ़ू हैं। कृष्णा अय्यर की पत्नी की मृत्यु के बाद शंकरण के परिवार से उनको बड़ी सहायता मिलती है। शंकरण के दिल्ली रहने से कृष्णा अय्यर को बड़ी मदद मिलेगी।
कृष्णा अय्यर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की स्टे याचिका सुनने वाले थे।(याद रहे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की लोक सभा की सदस्यता 12 जून 1975 को रद कर दी थी।) यह जान कर प्रधान मंत्री ने आदेश दे दिया कि शंकरण श्रम मंत्रालय में (यानी दिल्ली में)रुक सकते हैं। पर,उधर जस्टिस कृष्णा अय्यर ने बिना शर्त लगाए स्टे नहीं दिया। अपने जजमेंट में कह दिया कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी सदन की बैठकों में शामिल तो हो सकती हैं,पर,सदन में वह मतदान नहीं कर सकतीं। उसके बाद प्रधान मंत्री ने आदेश दे दिया कि ‘‘शंकरण को फौरन वापस जाना चाहिए।’’