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24-Mar-2025 08:52 AM
By First Bihar
Bihar News : पिछले साल अक्टूबर 2024 में पटना जिले में गंगा किनारे बाढ़ प्रभावित परिवारों के लिए बनाए गए राहत शिविरों में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है। जांच में 2.98 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। गंगा किनारे दीघा मरीन ड्राइव से लेकर पटना सदर प्रखंड तक 14 जगहों पर राहत शिविर बनाए गए थे। जिलाधिकारी (डीएम) डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए चार सदस्यीय कमेटी गठित की थी, जिसकी अध्यक्षता एडीएम ने की। कमेटी ने एक महीने तक बिल विपत्रों की गहन जांच की और भौतिक सत्यापन किया, जिसके बाद यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ।
जांच में क्या सामने आया?
बताते चलें कि राहत शिविरों के लिए 2 करोड़ 72 लाख रुपये और भोजन पर 50 लाख रुपये खर्च होने का दावा किया गया था। लेकिन जांच के बाद केवल 16 लाख रुपये शिविर और 8 लाख रुपये भोजन के लिए भुगतान की अनुशंसा की गई। यानी कुल 2.98 करोड़ रुपये की हेराफेरी पकड़ी गई है। इसके अलावा शिविरों में रोजाना कितने लोगों ने भोजन किया, इसका कोई स्पष्ट रिकॉर्ड रजिस्टर में नहीं था। पीड़ित परिवारों का पूरा विवरण दर्ज करना अनिवार्य था, लेकिन संचालकों ने मनमाने तरीके से लोगों की संख्या और भोजन का खर्च दिखाया।
यही नहीं बिल विपत्रों में टेंट और पंडाल के लिए जितना क्षेत्रफल (वर्ग फीट) दिखाया गया, वह मौके पर उपलब्ध जगह से कई गुना अधिक था। भौतिक सत्यापन में यह साफ हुआ कि दावा की गई जगह मौजूद ही नहीं थी, जिससे फर्जीवाड़ा उजागर हुआ। ज्ञात हो कि हर शिविर में जिला प्रशासन का एक कर्मचारी तैनात था, लेकिन कई जगहों पर कर्मचारियों की रिपोर्ट और एजेंसी के दावों में तालमेल नहीं था।
पहले भी सामने आ चुकी हैं गड़बड़ियां
यह पहला मौका नहीं है जब पटना जिला प्रशासन के खर्च में अनियमितता पकड़ी गई हो। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी खर्च के ब्योरे में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई थी। तब चार सदस्यीय कमेटी ने 124 करोड़ रुपये के बिल विपत्रों की जांच की थी, जिसमें से केवल 32 करोड़ रुपये ही सही पाए गए थे। यानी 92 करोड़ रुपये की हेराफेरी का खुलासा हुआ था। इस बार भी उसी कमेटी ने राहत शिविरों की जांच की, जिसने एक बार फिर प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार को उजागर किया।
सवाल जो बाकी हैं
यह घोटाला कई गंभीर सवाल खड़े करता है। पहला, जब हर शिविर में जिला प्रशासन का कर्मचारी तैनात था, तो इतने बड़े पैमाने पर हेराफेरी कैसे हो गई? क्या कर्मचारी और एजेंसियां मिली हुई थीं? दूसरा, बिल विपत्रों में इतनी बड़ी गड़बड़ी को शुरू में कैसे मंजूरी मिली? क्या ऊपरी स्तर के अधिकारियों की भी इसमें संलिप्तता है? तीसरा, इस मामले में अब तक किसी की गिरफ्तारी या सजा क्यों नहीं हुई? बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई का दावा करने वाली नीतीश सरकार इस मामले में क्या कदम उठाएगी?
जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अतीत के अनुभव बताते हैं कि बिहार में ऐसे मामलों में कार्रवाई अक्सर धीमी होती है। 2005 के बाढ़ राहत घोटाले में संतोष झा को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन कई बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। इस बार भी देखना होगा कि क्या यह जांच सिर्फ कागजी कार्रवाई तक सीमित रहती है, या वाकई दोषियों को सजा मिलती है।