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26-Dec-2020 12:24 PM
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DESK : बिहार में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर आरजेडी के सीनियर नेता शिवानंद तिवारी ने सवाल उठाया था. तिवारी ने कहा था कि राहुल गांधी के पास देश का नेतृत्व करने और चलाने की क्षमता नहीं है. लेकिन अब यह सवाल महाराष्ट्र की राजनीति में भी उठने लगा है. इसको लेकर शिवसेना ने भी कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया है. महाराष्ट्र में कांग्रेस के बूते सरकार चला रही शिवसेना ने अब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता को लेकर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है. शिवसेना ने कहा है कि यूपीए का नेतृत्व अब कांग्रेस की बजाय किसी अन्य दल के पास होना चाहिए. शिवसेना के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि यूपीए का नेतृत्व शरद पवार को सौंप देना चाहिए.
राहुल में नेतृत्व की क्षमता नहीं
शिवसेना के मुखपत्र सामना में संपादकीय के जरिए केंद्र में मौजूद विपक्षी एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं. इसमें यूपीए का नेतृत्व शरद पवार को सौंपने की वकालत की गई है. साथ ही साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठाए गए हैं. शिवसेना का कहना है कि जब तक यूपी में बीजेपी विरोधी सभी दलों को शामिल नहीं किया जाता तब तक के विपक्ष मोदी के सामने बेअसर साबित होता रहेगा. शिवसेना ने विपक्ष के नेताओं के प्रति सरकार के रवैया को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं. सामना में लिखा गया है कि दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन शुरू है. 1 महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है लेकिन विपक्ष बेहद कमजोर स्थिति में नजर आ रहा है. आंदोलन के बावजूद सत्ता में बैठे लोग बेफिक्र नजर आ रहे हैं और इसके लिए सबसे बड़ा कारण कमजोर विपक्ष है.
कई दलों को कांग्रेस पर भरोसा नहीं
किसान आंदोलन को अगर सरकार नोटिस नहीं ले रही तो इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी या गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार नहीं है बल्कि जवाबदेही सीधे-सीधे विपक्ष की है. सामना में लिखे संपादकीय के मुताबिक के विपक्ष अब तक के धारदार तरीके से इस आंदोलन को राजनीतिक मुद्दा बनाने में असफल रहा है. शिवसेना के मुताबिक कांग्रेसी नेतृत्व को लेकर जिस तरह का कन्फ्यूजन बना हुआ है. उससे यह भी सवाल खड़ा हो रहा है कि यूपीए का भविष्य आगे क्या होगा. इस भ्रम की स्थिति में एनडीए बिल्कुल एलायंस है और यूपीए की रणनीति दिशाहीन नजर आ रही है. ऐसे में जरूरी है कि किसी दूसरे दल के नेता को यूपी की कमान दी जाए. सामना में आगे लिखा गया है कि राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर भले ही जोरदार संघर्ष कर रहे हो लेकिन वह असरदार नहीं हो पा रहे. शिवसेना ने इस बात पर भी सवाल खड़े किए हैं कि बीजेपी विरोधी होने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस, अकाली दल, बीएसपी, समाजवादी पार्टी जैसे दलों के साथ-साथ जगन मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक, कुमार स्वामी और चंद्रशेखर राव अब तक यूपीए का क्यों स्वीकार नहीं कर पाए हैं.